ऑपरेशन फ्लड
ऑपरेशन फ्लड कार्यक्रम 1970 में शुरू हुआ था। ऑपरेशन फ्लड ने डेरी उद्योग से जुड़े किसानों को उनके विकास को स्वयं दिशा देने में सहायता दी है, उनके द्वारा सृजित संसाधनों का नियंत्रण उनके हाथों में दिया है। राष्ट्रीय दुग्ध ग्रिड देश के दूध उत्पादकों को 700 से अधिक शहरों और नगरों के उपभोक्ताओं से जोड़ता है। इसके फलस्वरूप दूध के मूल्यों में होने वाले मौसमी और क्षेत्रीय परिवर्तन काफी कम हो गए, साथ ही साथ यह सुनिश्चित हुआ कि उत्पादकों को नियमित आधार पर पारदर्शी तरीके से उचित बाजार मूल्य मिलता रहे।
ऑपरेशन फ्लड की आधारशिला ग्राम दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियां हैं। ये समितियां उत्पादकों से दूध खरीदती हैं, उन्हें जरूरी जानकारी और सेवाएं देती हैं और उन्हें आधुनिक प्रबंधन और प्रौद्योगिकी सुलभ कराती हैं। ऑपरेशन फ्लड के उद्देश्यों में निम्नलिखित शामिल थाः
- दूध उत्पादन में वृद्धि ( “दूध की बाढ़”)
- ग्रामीण क्षेत्र की आय में वृद्धि
- उपभोक्ताओं को उचित दाम पर दूध उपलब्ध कराना
कार्यक्रम कार्यान्वयन
ऑपरेशन फ्लड का अमलीकरण तीन चरणों में किया गया था।
चरण I
ऑपरेशन फ्लड चरण I (1970 से 1980) का वित्तपोषण विश्व खाद्य कार्यक्रम के अंतर्गत यूरोपियन संघ और फिर ईईसी द्वारा उपहार में मिले स्किम्ड मिल्क पाउडर तथा बटर ऑयल की बिक्री से किया गया। राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड ने इस कार्यक्रम की योजना बनाई और ईईसी की सहायता की बारीकियों पर बातचीत की।
प्रथम चरण के दौरान ऑपरेशन फ्लड ने देश के 18 प्रमुख दुग्ध शेड़ों को देश के चार मुख्य महानगरों – दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई के उपभोक्ताओं के साथ जोड़ा।
चरण II
ऑपरेशन फ्लड के चरण II (1981-85) में प्रमुख दुग्ध केंद्रों की संख्या 18 से बढ़कर 136 हो गई। दूध 290 नगरों के बाजारों में उपलब्ध होने लगा। 1985 के अंत तक 43,000 आत्मनिर्भर ग्राम दूध सहकारी समितियों की व्यवस्था बन चुकी थी, जिसमें 42.50 लाख दूध उत्पादकों का जुड़ जाना एक हकीकत बन गया था।घरेलू पाउडर उत्पादन जो योजना के पूर्व वर्ष में 22,000 टन था वह 1989 में बढ़ कर 1,40,000 टन हो गया। यह सारी वृद्धि उन डेरियों से हुई जिनकी स्थापना ऑपरेशन फ्लड के दौरान हुई थी। इस प्रकार, ई ई सी से प्राप्त उपहारों और विश्व बैंक से प्राप्त ऋणों से आत्मनिर्भर बनने मे सहायता मिली। उत्पादक सहकारी समितियों द्वारा दूध की सीधी बिक्री में कई लाख लीटर प्रतिदिन की वृद्धि हो गई।
चरण III
ऑपरेशन फ्लड के चरण III (1985 से 1996) ने डेरी सहकारिताओं को अधिक मात्रा में दूध की खरीदी और बिक्री के लिए अपेक्षित बुनियादी ढ़ांचे के विस्तार एवं सुदृढ़ीकरण हेतु सक्षम बनाया । सहकारी सदस्यों की शिक्षा की सघन व्यवस्था के साथ ही उनके लिए प्राथमिक पशु- स्वास्थ्य देखभाल सेवा, आहार एवं कृत्रिम गर्भाधान सुविधाओं का विस्तार किया गया।
ऑपरेशन फ्लड के चरण III ने भारत के दूध सहकारी आन्दोलन को मजबूत किया जिसमें द्वितीय चरण II में गठित 42,000 वर्तमान सहकारी समितियों में 30,000 नई डेरी सहकारिताएं जुड़ीं। महिला दुग्ध सहकारी समितियों व महिला सदस्यों की संख्या में महत्त्वपूर्ण वृद्धि के साथ 1988-89 में दूध शेडों की संख्या 173 तक पहुंच गई।
तृतीय चरण में पशु स्वास्थ्य और पशु पोषण में अनुसंधान एवं विकास पर विशेष ध्यान दिया गया। नवीन खोजों जैसे थिलेरियोसिस के टीके, बायपास प्रोटीन आहार और यूरिया-सीरा खनिज ब्लाक, सभी ने दुधारू पशुओं की उत्पादकता बढ़ाने में योगदान दिया।
प्रारंभ से ही ऑपरेशन फ्लड की एक सामान्य डेरी कार्यक्रम से कहीं अधिक विशाल कार्यक्रम के रूप में अभिकल्पना और कार्यान्वयन किया गया था। डेरी उद्योग को विकास के साधन के रूप में देखा गया था जिसमें लाखों ग्रामवासियों को रोजगार और नियमित आय के अवसर मिले । “ऑपरेशन फ्लड को ग्रामीण विकास परिदृश्य को साकार करने वाले बीस वर्षीय प्रयोग के रूप में देखा जा सकता है ।”
(विश्व बैंक रिपोर्ट 1997 सी)।